लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (16) जख्मो पर नमक छिड़खना ( मुहावरों की दुनिया )
शीर्षक = जख्मो पर नमक छिड़खना
मानव खुश था, क्यूंकि उसकी माँ और दादी की वजह से उसने दो मुहावरें और मुकम्मल कर लिए थे, अब बस कुछ और मुहावरें और बचे थे, जिन्हे वो समय रहते अपने परिवार वालों की मदद से पूरे कर लेगा, अब ज्यादा चिंता नही थी
रात को वो अपने दादा के पास नही गया, बल्कि मुहावरों को अपनी कॉपी में लिख रहा था, और फिर ना जाने कब उसकी आँख लग गयी और वो सो गया
अगली सुबह, राधिका ने उसे उठाया और फिर वो सब नहा धोकर बाहर आ गए, जहाँ पहले से ही दीन दयाल जी और सुष्मा जी बैठे उन दोनों के आने का इंतज़ार कर रहे थे
सब लोगो ने चाय पी, तब ही दीन दयाल जी बोले " और मानव बेटा, अब तो तुम खुश हो कल तो आपकी दादी और मम्मी ने भी आपकी मदद की, "
"जी दादा, मैं बहुत खुश हूँ, की आप लोगो की वजह से मुझे हर रोज़ एक नये मुहावरें पर कहानी सुनने को मिल रही है," मानव ने कहा
"अच्छी बात है, तो अगला मुहावरा कौन सा है तुम्हारी कॉपी में " दीन दयाल जी ने पूछा
"मैं अभी देख कर आता हूँ, कि अगला मुहावरा कौन सा है," मानव ने कहा और उठ कर कमरे की और भागा
"अरे! संभाल कर बेटा, गिर मत जाना " सुष्मा जी ने कहा
"ये मानव भी ना," राधिका ने कहा चाय का कप मुँह से हटाते हुए
"और बहु, आशीष से बात हुयी तुम्हारी, मेरे पास भी आज तीन दिन हो गए कोई फ़ोन नही आया " सुष्मा जी ने पूछा
इस तरह अचानक पूछे गए सवाल पर राधिका हिचकिचाई और बोली " व,, व,, वो मम्मी जी, मेरे पास भी तीन दिन से कोई फ़ोन नही आया है, आप परेशान ना हो मैंने अस्पताल फ़ोन करके पूछा था, तो पता चला एक दो सर्जरी थी जिसके चलते पिछले तीन दिनों से डॉक्टर आशीष काफ़ी व्यस्त थे ( राधिका ने झूठ बोला था ) "
""अच्छा, अच्छा,, कोई बात नही,, किसी की जान बचाने से जरूरी काम कोई और नही, क्यूँ ना आशीष के पिता जी "सुष्मा जी ने दीन दयाल जी की तरफ देखते हुए कहा
दीन दयाल जी ने कोई प्रतिकिर्या नही दी, इससे पहले बात आगे बढ़ती तब ही मानव दौड़ता हुआ कमरे से बाहर आकर बोला " दादा जी देखिये, अगला मुहावरा है (जख्मो पर नमक छिड़खना )"
इस मुहावरें को सुन राधिका ने सुष्मा जी की तरफ देखा और सुष्मा जी ने दीन दयाल जी की तरफ, क्यूंकि कही ना कही अभी उन्होंने भी तो उनसे अपने बेटे के बारे में प्रश्न कर उनके जख्मो पर नमक छिड़क दिया था,
थोड़ी देर ख़ामोशी के बाद दीन दयाल जी ने मानव को गोदी में बैठाया और बोले " इस मुहावरें का पहले अर्थ समझते है, इस मुहावरें का अर्थ होता है, कोई व्यक्ति जो पहले से ही परेशान हो किसी तकलीफ में हो उसके बावज़ूद उसे और तकलीफ देना ही जख्मो पर नमक छिड़खने जैसा होता है "
इससे पहले दीन दयाल जी अपनी बात आगे बढ़ाते उससे पहले ही दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती है, राधिका दरवाज़ा खोलने के लिए उठती है, लेकिन सुष्मा जी उसे रोक कर स्वयं दरवाज़ा खोलने चली जाती है
दरवाज़ा खोलने पर वो पाती है, कि एक लड़की दरवाज़े पर खड़ी थी, जिसे वो जानती थी और उसे यूं इस तरह अचानक दरवाज़े पर देख बोली " अरे! सौम्या बेटा तू, तू कब आयी ससुराल से "
"काकी मैं अंदर आ जाऊ, कुछ बात करनी है " सौम्या ने पूछा
"अरे, तुझे इस तरह दरवाज़े पर देख, मैं तो तुझे अंदर आने का कहना भूल ही गयी, आओ,,, आओ अंदर आओ भला बेटियों को भी कोई इज़ाज़त लेना पडती है अपने घर आने की" सुष्मा जी ने कहा
सौम्या चहरे पर मुस्कान सजा कर घर में कदम रखती और कहती " काकी, दीनू काका घर पर है क्या?
"हाँ, हाँ सौम्या बेटा, तुम्हारे दीनू काका घर पर ही है, तुम चलो मैं कुछ चाय नाश्ता लेकर आती हूँ " सुष्मा जी ने कहा
"क,, क,,, काकी इन सब की कोई ज़रूरत नही, मुझे काका से कुछ ज़रूरी बात करनी है " सौम्या ने कहा
"क्या बात है? बेटा,, और ये तूने अपने आप को इतना सादा क्यूँ बना रखा है? तेरी मांग भी सूनी है और तेरा गला भी, सब ठीक तो है " सुष्मा जी ने कहा
सौम्या कुछ कहती उससे पहले ही, दीन दयाल जी बोल पड़े " अरे! भाग्यवान कौन है? किससे बाते कर रही है, आप? "
"चलो, चलो अंदर चलो, और खुल कर बताओ क्या बात है? " सुष्मा जी ने कहा और उसे अपने साथ ले आयी जहाँ राधिका, दीना नाथ जी और मानव बैठे थे
"अरे! सौम्या बेटी तुम, तुम कब आयी,,, जाओ, जाओ कुछ चाय नाश्ते का इंतेज़ाम करो कितने दिनों बाद बेटी घर आयी है, और बच्चा कहा है? उसे साथ नही लायी,, दामाद जी कैसे है " दीना नाथ जी ने एक ही बार में सब पूछ लिया
"अरे! जरा आराम से, आपने तो एक ही सास में सब कुछ पूछ लिया, जरा बैठने तो दीजिये उसे, आओ सौम्या तुम यहाँ बैठो और अब बताओ क्या बात है? " सुष्मा जी ने कहा
"काकी, बात अच्छी नही है, मैंने अपने पति का घर छोड़ दिया है, और अपने बच्चें को लेकर अपने मायके आ गयी हूँ, कुछ हफ्ते पहले ही मेरा और मेरे पति का तलाक हो गया है " सौम्या ने कहा
"क्या, लेकिन ये सब कैसे और कब हुआ? हमें तो पता ही नही चला " दीना नाथ जी ने कहा
"जी काका, बस अब बर्दाश्त से बाहर हो गया था, उस आदमी के साथ रहना," सौम्या ने कहा
"इस तरह क्यूँ कह रही हो बेटा? कुछ हुआ था क्या? जब तुम्हारी शादी हुयी थी तब तो सब अच्छा था," सुष्मा जी ने कहा
"जी काकी मुझे और मेरे घर वालों को भी यही लगता था, लेकिन बाद में पता चला की वो लड़का केसा था, उसके परिवार वाले तो अच्छे थे, लेकिन वो लड़का किसी जल्लाद से कम नही था, शादी के एक हफ्ते बाद ही मुझे पता चला की वो नशा करता है, नशे तक तो बात सही थी, पिता जी भी कभी कभी शराब पी लेते थे, लेकिन वो सिर्फ नशा ही नही करता था बल्कि नशे की हालत में मेरे साथ मार पीट भी करता था
शादी के एक साल तक मैंने बर्दाश्त किया, किसी को भी नही बताया सोचा थोड़ा समय गुज़रेगा तो ठीक हो जाएगा, अपने रिश्ते को बरकरार रखने की हर मुमकिन कोशिश करती रही, यहां तक की उसके वंश को भी इस दुनिया में ले आयी
लेकिन उसके बाद भी उसमे कोई सुधार नही आया, समय जैसे तैसे करके गुज़रता रहा, और मेरा बेटा तीन साल का हो गया, वो भी मुझे अपने पिता के हाथो मार खाते देखता था, अब मेरे सब्र का बांध टूट गया था, मैं नही चाहती थी कि मेरा बेटा अपने पिता जैसा बन जाए, इसलिए मैंने अदालत में उससे तलाक लेने कि अर्ज़ी दी और मायके चली आयी
घर वालों ने समझाया या यूं कहे मेरे जख्मो पर नमक छिड़कते रहे और बार बार मुझे उस जल्लाद के पास जाने कि सलाह देते रहे, लेकिन अब बहुत हो चूका था और मैंने ठान लिया था की अब मुझे उससे अलग होना है और अपना बच्चा भी अपने पास रखना है
ईश्वर की किरपा से मुझे उससे तलाक मिल गयी और मेरा बेटा भी मुझे मिल गया, इन सब के बावज़ूद अब मुझे मोहल्ले वाले ना जाने क्या कुछ कहते रहते है, सिर्फ वही नही मेरे घर वाले भी मेरे दुख को और बढ़ाने के लिए हर दम मेरे जख्मो पर नमक छिड़खने का प्रयास करते रहते है, और मुझसे कहते रहते है कि आखिर अब तेरा क्या होगा, कैसे तू अकेली इस बच्चें को पालेगी,बिना आदमी के सहारे के
लेकिन मैंने ठान लिया है, कि मैंने अपने बच्चें को और खुद को बिना किसी सहारे के पाल के दिखाउंगी, काका मुझे बस थोड़ी सी आपकी मदद की ज़रूरत है, मैंने अपने ही गांव में बने प्राइमरी स्कूल में खाना बनाने की अर्ज़ी दी है, जिससे की मैं अपने बच्चें को पाल सकूँ, लेकिन उनका कहना है, कि अगर किसी बड़े की सिफारिश लग जाए तो काम आसान हो जाएगा, काका आपको तो गांव का हर छोटा बड़ा इंसान जानता है, मेरी मदद कीजिये ताकि मैं लोगो का मुँह बंद कर सकूँ जो हर दम अपने तानो और बातों से मेरे जख्मो पर नमक छिड़खते रहते है " सौम्या ने कहा
दीना नाथ जी की आँखे नम हो गयी, उसकी कहानी जान कर, और वो उसके सर पर हाथ रख कर बोले " बेटा! तू बहुत बहादुर लड़की है, जो तूने इतना बड़ा कदम उठाने की सोची, मैं तेरी मदद अवश्य करूंगा, उस स्कूल में तुझे काम दिलाने के लिए मुझे अगर चीन भी जाना पड़ा तो भी मैं जाऊंगा, तू फ़िक्र मत कर, बस तू अपना और अपने बेटे का ध्यान रख और लोगो की बातों को एक कान से सुन कर दुसरे कान से निकाल फेंक, क्यूंकि कभी कभी लोगो की बाते रास्ते में पड़े पत्थर की समान सामने आ जाती है, जिन्हे हटाने के चककर में हम अपना मंजिल भूल जाते है, इसलिए कभी कभी रास्ते में आने वाले पत्थरो को हटाने के बजाये उन्हें पार करके जाने में ही भलाई है,"
काका से अपने लिए इस तरह सुन सौम्या को बेहद हौसला मिला, अब तक तो सब उसे कसूरवार समझ रहे थे, अपना घर तोड़ने के लिए, सुष्मा जी और राधिका ने भी उसे हौसला दिया
मानव जो की सौम्या की कहानी सुन रहा था, उसे आज के मुहावरें पर सौम्या की आप बीती सुन समझ आ गया था, आज के मुहावरें का अर्थ, और वो बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया
मुहावरों की दुनिया हेतु
डॉ. रामबली मिश्र
05-Feb-2023 09:39 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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प्रिशा
04-Feb-2023 10:54 PM
Behtarin rachana
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सीताराम साहू 'निर्मल'
04-Feb-2023 10:52 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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